कोराना संकट के बीच इस विपदा से बचने-बचाने के लिए हर कोई अपने स्तर पर बतौर जिम्मेदार नागरिक भूमिका निभा रहा है। कोई घर के अंदर रहकर अपनी जिम्मेदारी समझ रहा है तो कोई कठिन हालात में बाहर रहकर अपनी ड्यूटी बजाकर लोगाें को सुरक्षित रखने में अपनी महती भूमिका निभा रहा। ऐसे ही दो कोरोना वारियर्स की कहानी जानते हैं।
अपने नवजात बेटे को वीडियो पर देखा
ऐसे समय सबसे कठिन ड्यूटी करने वालों में पुलिस भी हैं जो 24 घंटे लॉक डाउन को सफल करने में लगे रहते हैं। अपने परिवार से दूर। हर पल से दूर। ऐसे ही एक वारियर्स हैं उत्तराखंड पुलिस के कॉन्स्टेबल नरेंद्र रावत। मीडिया में आयी रपट के अनुसार जब वह पिता बने जो लॉक डाउन के दौरान ड्यूटी पर थे। देहरादून के प्रेमनगर थाने में तैनात कॉन्स्टेबल नरेंद्र रावत 22 मार्च से ही घर नहीं गए हैं.। घर से महज 20 किलोमीटर दूर रहने के बाद भी वह अपने घर नहीं जा पाए। जब वह पिता बने तो उन्हें घर वालों ने बेटे की तस्वीर वीडियो से दिखाया।

इंजीनियर ने पूरा किया अपना दायित्व
भारत में एक से बढकर एक कोरोना वारियर्स की कहानी हम देख और सुन रहे हैं। ऐसे में अभिषेक की कहानी दूसरों से अलग है। एक इंजीनियर के रूप में उन्होंने जो तकनीकी बारिकियां को सीखा और समझा, उसके सहारे कई कोरोना पीडितों के लिए उम्मीद की किरण बने। असल में, बेंगलुरु अभिषेक शंकर नादगीर सैमसंग में काम करते हैं। उन्हें पता चला कि शहर के एक अग्रणी अस्पताल में मशीन काम नहीं कर रहा है। इस अस्पताल में कई कोरोना मरीजों का इलाज चल रहा है। मशीन के कुछ कलपुर्जे मिल नहीं रहे थे। अब क्या किया जाए ? कुछ पल के लिए सोचा और उसके बाद अपनी बहन और पडोसी के लैपटाॅप से जरूरी कलपुर्जे निकाल लिए। चंद घंटों की मेहनत और सूझबूझ से अस्पताल का मशीन चालू कर दिया। अब वहां निर्बाध गति से कोरोना रोगियों का इलाज हो रहा है। क्या किसी ने सोचा था कि आपात स्थिति में गेमिंग कंसोल और लैपटाॅप के जरिए कोरोना रोगियों को राहत मिलेगी। है न अभिषेक शंकर की गजब की सोच। आज इन्हें सैमसंग परिवार सहित आस पास के लोग सलाम कर रहे हैं।