कोरोना से बचाव में इस्तेमाल होने वाले मेडिकल सेफ्टी उपकरण ने बढ़ाया प्लास्टिक कचरा का संकट

अनमोल गुप्ता

आज पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही हैं। जहां एक ओर लॉकडाउन के कारण पर्यावरण को खुद को दुरुस्त करने का मौका मिला है तो वहीं दूसरी ओर इस वायरस से जंग में इस्तेमाल होने वाला अहम हथियार यानी मेडिकल सेफ्टी उपकरण ने फिर से एक बार प्लास्टिक कचरा की समस्या उत्पन्न करना शुरू कर दिया है।

बड़े पैमाने पर डॉक्टरों, नर्सो, मेडिकल स्टाफ एवं आम लोगों के द्वारा इस खतरनाक वायरस से बचाव में इस्तेमाल होने वाले सिंगल-यूज मास्क, दस्ताने, पीपीई किट और सैनिटाइजर की बोतलें आदि जहां एक ओर ये इंसानों को इस वायरस के संक्रमण से बचा रही हैं वहीं दूसरी ओर इनका सही तरह से निपटारा ना हो पाने के कारण ये प्लास्टिक कचरा बनकर सड़कों, समुद्रों और वन्यजीवों के जी का जंजाल बन रही हैं।

वेस्ट एक्सपर्ट्स के मुताबिक, प्रतिदिन हर राज्य से औसतन 1 से 1.5 टन कोविड वेस्ट निकल रहा है। इस कचरे के निपटान के लिए सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने गाइडलाइन्स जारी की है। कोविड वेस्ट की हैंडलिंग, ट्रीटमेंट और डिस्पोजिंग का काम सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016 और बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स के तहत करने के लिए कहा गया है। लेकिन इसके निस्तारण में बहुत सारी चुनौतियां हैं।

जीवन को सरल बनाने के लिए आविष्कार किया गया प्लास्टिक इंसानों की मुसीबत बनता जा रहा है। 1907 में आविष्कार हुआ कृत्रिम प्लास्टिक, जहां इसे आधुनिक विज्ञान के एक वरदान के रूप में देखा जा रहा था। परन्तु आज जीवन का हिस्सा बन जाने वाला वहीं प्लास्टिक मानव जीवन ही नहीं , सम्पूर्ण जीवन के लिए बहुत बड़ा अभिशाप बन गया है।

दरअसल, प्लास्टिक के दो पक्ष है। एक वह जो हमारे जीवन को सुविधाजनक बनाने की दृष्टि से उपयोगी है तो उसका दूसरा पक्ष स्वास्थ्य की दृष्टि से प्रदूषण फैलाने वाला एक ऐसा हानिकारक तत्व है, जिसे रिसाइकल करके दोबारा उपयोग में तो लाया जा सकता है, लेकिन नष्ट नहीं किया जा सकता। अगर इसे नष्ट करने के लिए जलाया जाता है तो अत्यंत हानिकारक विषैले रसायनों को उत्सर्जित करता है, अगर मिट्टी में दबाया जाता है तो हजारों साल यूं ही पड़ा रहेगा। अधिक से अधिक सूक्ष्म कणों में टूट जाएगा लेकिन पूर्ण रूप से नष्ट नहीं होता है। अगर वहीं प्लास्टिक को समुद्र में डाला जाए तो वहां भी केवल समय के साथ छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट कर पानी को प्रदूषित ही करता है।

फिर यही प्लास्टिक के कण जैसे -पॉली ,प्रॉपीलीन, पॉलीएथिलीन, टेरेप्थलेट आदि हमारे जल,भोजन एवं वायु के साथ हमारे शरीर में भी आसानी से प्रवेश कर नुकसान पहुंचाते हैं।अध्ययनों से पता चला है कि ये कण हमारे प्रतिरोधी तंत्र को हानि पहुंचाते हैं।एक मोटे अनुमान के मुताबिक मनुष्य के शरीर में प्रतिवर्ष 82 हजार प्लास्टिक कण प्रवेश करते हैं और विविध प्रकार के रोगों का कारण बनते हैं।जिसमें एक उदाहरण कैंसर जैसी घातक बीमारी भी है।

आज देश-दुनिया का कोई भी ऐसा कोना नहीं बचा जहां प्लास्टिक ने विनाश ना किया हो। एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 1950 से अब तक दुनिया में लगभग आठ अरब तीस करोड़ टन से भी अधिक का प्लास्टिक उत्पादन हो चुका है।असल में “सिंगल यूज प्लास्टिक” ही हमारे गले का फांस बना हुआ है। क्योंकि एक तो यह दोबारा इस्तेमाल में नहीं आता और उसकी प्रवृत्ति ऐसी है कि अगर यह पृथ्वी पर होगा तो जानवरों के पेट से लेकर नदी नालों को जाम कर देगा, फिर इनसे होता हुआ अगर यह समुद्र तक पहुंच जाए तो यह समुद्री जीवो के लिए मुसीबत बन जाता है। हर साल 3 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा समुद्र में पहुंचता है। यूनेस्को के अनुसार दुनिया में प्लास्टिक के दुष्प्रभाव से लगभग 10 करोड़ समुद्री जीव-जंतु प्रति वर्ष मर रहे हैं।

आइए जानते है, आखिर सिंगल यूज प्लास्टिक है क्या?

वैसे तो भारत में सिंगल यूज प्लास्टिक की कोई परिभाषा नहीं है और यह भी तय नहीं है कि कौन सी चीजें इसके दायरे में आएंगी। इसकी परिभाषा यूरोप में तय है, इसके अनुसार प्लास्टिक की बनी ऐसी चीजें जिनका हम सिर्फ एक बार इस्तेमाल कर फेंक देते हैं और जिन से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। जैसे- प्लास्टिक बैग, स्ट्रॉ, थर्माकोल, पानी की बोतल, फूड पैकेजिंग इत्यादि। भारत में 26000 टन से ज्यादा प्लास्टिक हर रोज पैदा होता है, जो 9 हजार एशियाई हाथियों के वजन के बराबर है। भारत में कुल 45 फ़ीसदी यानी 90 लाख टन प्लास्टिक का तुरंत इस्तेमाल कर फेंक दिया जाता है। भारत में हर मिनट 10 लाख प्लास्टिक बोतलें खरीदी जाती हैं जिनमें से 50% कचरा बन जाती है।

प्लास्टिक जनित वस्तुओं को नष्ट होने में 800 से 1000 साल तक का समय लगता है। जिस कारण पृथ्वी पर प्लास्टिक कचरा इतना अधिक जमा हो चुका है कि इस कचरे से पृथ्वी को चारों ओर से पांच बार आसानी से लपेटा जा सकता है। आप सोच सकते हैं कि यह कितना डरावना है।स्थितियों की गंभीरता को देखते हुए वर्तमान में केवल उसी प्लास्टिक के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है जिसे रिसाइकल करके उपयोग में लाया जा सकता है लेकिन अगर हम सोचते हैं इस तरह से पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचा रहे तो हम गलत है। भारत में केवल 60% ही प्लास्टिक रीसाइक्लिंग में जाती है, लेकिन जानने की बात यह है कि इसमें भी प्लास्टिकको केवल 7-8 बार ही रिसाइकल किया जा सकता है वो भी इससे तैयार प्लास्टिक कम गुणवत्ता वाली हासिल होती है। इस पूरी प्रक्रिया में नए प्लास्टिक से एक नई वस्तु बनाने के मुकाबले उसे रिसाइकल करने में 80% अधिक ऊर्जा का उपयोग होता है। साथ ही इससे विषैले रसायनों की उत्पत्ति भी होती है।

“सिंगल यूज प्लास्टिक” बैन के लिए हम कितने है तैयार?

देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने “सिंगल यूज़ प्लास्टिक” बंद करने का आह्वान किया था,जिसे गंभीरता से लेने की आवश्यकता है।सबसे पहले हमें यह जानने की आवश्यकता है कि प्लास्टिक के विकल्प के रूप में हमारे पास क्या है और आसानी से लोगों तक उसकी कितनी पहुंच हो सकती है?

वैसे तो अभी तक इसका कोई स्थाई विकल्प नहीं ढूंढा जा सका है, लेकिन सरकारें और कंपनियां कह रही है इसका जल्द ही विकल्प तलाश लिया जाएगा।अगर हम विकल्पों की बात करें तो ‘जूट’ प्लास्टिक का अच्छा विकल्प हो सकता है। लेकिन जूट उत्पादों की कीमतें बहुत अधिक होने के कारण सिंथेटिक फाइबर ने इसकी जगह ले ली, जिससे जूट के उत्पादन में गिरावट हुई। आज समय है जूट के उत्पादन को बढ़ावा दिया जाए और इसकी नई इकाइयां स्थापित की जाए। अब बात कुल्हड़ और पेपर बैग की करें तो इसे भी समाधान के रूप में देखा जा सकता है लेकिन यह भी पर्यावरण की एक लागत पर ही आते हैं क्योंकि इन्हें शीर्ष मिट्टी और लकड़ी के गुदे से बनाया जाता है।अगर हम बायोप्लास्टिक की बात करें तो यह कम से कम ढाई गुना अधिक महंगा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर प्लास्टिक की जगह कांच एलुमिनियम या टिन का इस्तेमाल करें तो इससे 5 गुना ज्यादा पर्यावरण प्रदूषण फैलेगा।

सच कहा जाए तो प्लास्टिक का एक ऐसा विकल्प खोजना जो पर्यावरण के अनुकूल हो और लागत प्रभावी भी हो तो दोनों होना आसान नहीं है, इसलिए कुछ कंपनियां हताश हैं।दिल्ली में कुछ पेशेवर लोगों ने मिलकर डिस्पोजेबल कटलरी की जगह स्टील क्रोकरी सेट मुफ्त उधार देने का एक सराहनीय कदम उठाया, जिससे हम कह सकते हैं शादी पार्टी एवं अन्य कार्यक्रम में डिस्पोजेबल कटलरी के विकल्प के रूप में सामुदायिक क्रॉकरी बैंक स्थापित कर प्रभावी कदम उठाया जा सकता है और शादियों में जीरो प्रतिशत वेस्ट प्रोग्राम अनिवार्य कर ही शादी के सर्टिफिकेट दिये जाए और साथ ही इंदौर के तर्ज पर ‘डोर टू डोर’ गीला एवं सूखा कूड़ा अलग-अलग इकट्ठा कर प्लास्टिक कचरा प्रबंधन को दुरुस्त किया जा सकता है।

रोजगार पर सिंगल यूज प्लास्टिक बैन के क्या असर होंगे?

‘सिंगल यूज़ प्लास्टिक बैंन’ के ऐलान को लेकर सिर्फ बनाने वाले ही नहीं बल्कि प्लास्टिक के कारोबार से जुड़े तमाम कारोबारी परेशान है। 7.5 करोड़ लोग प्लास्टिक इंडस्ट्री से जुड़े हैं, इस पर अचानक पूर्ण प्रतिबंध से इस क्षेत्र में रोजगार पर संकट आ सकता है। 50,000 इकाइयां इस क्षेत्र में लगी है जिनमें से 95% छोटी इकाइयां है। इस तरह के प्रतिबंध से 10,000-11,000 उद्यम बंद हो जाएंगे। जिससे प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तौर पर 10 लाख लोगों की आजीविका प्रभावित होगी। सरकार को पहले चाहिए कि इन सभी के लिए उचित पुनर्वास का इंतजाम करें फिर इस पर चरणबद्ध तरीके से प्रतिबंध लगाए।

समस्या ही समाधान:-

भारत में हर व्यक्ति सालाना 11 किलोग्राम प्लास्टिक इस्तेमाल करता है। अमेरिका में इससे 10 गुना ज्यादा इस्तेमाल होता है। हर साल 1.5 लाख टन से ज्यादा प्लास्टिक कचरा भारत विदेशों से आयात करता है।भारत में समस्या प्लास्टिक की नहीं इसे इकट्ठा करने की है। अगर यही कचरा इकट्ठा हो जाए तो इससे पर्यावरण को बचाया जा सकता है।

हमें “वेस्ट टू वेल्थ” पर चलना चाहिए। हम प्लास्टिक के जरिए ईंधन बना सकते हैं। जब पॉलीथीन को 600 डिग्री से ज्यादा तापमान पर जलाया जाता है, तो उससे ईंधन निकाला जा सकता है। पॉलीथीन की ज्वलनशीलता कोयले के मुकाबले 3 गुना अधिक होती है। 1 किलो पॉलीथीन से 3 किलो कोयला बचा सकते हैं। इसका इस्तेमाल सीमेंट फैक्टरी में हो सकता है, अगर हम 1% कोयले को भी प्लास्टिक से रिप्लेस कर लेते हैं तो इससे पर्यावरण को बहुत फायदा होगा। हम सड़क बनाने में भी प्लास्टिक का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए नॉन-रिसाइकलेबल प्लास्टिक को सीमेंट इंडस्ट्री या एनर्जी प्लांट में प्रोसेसिंग के लिए भेज सकते हैं, जहां इनका सही इस्तेमाल हो सके।

जागरूकता दिलायेगी प्लास्टिक से मुक्ति:-

यह कहां की और कैसी सोच है कि प्लास्टिक कचरा हम फैलाएं और उम्मीद करें कि सरकारें उसका निस्तारण करें अगर हम जन भागीदारी से प्लास्टिक का इस्तेमाल रोकने की बात करते हैं तो जागरूकता एक अहम विषय बन जाता है। कानून द्वारा प्रतिबंधित करना या उपयोग करने पर जुर्माना लगाना इसका हल ना होकर लोगों द्वारा स्वेच्छा से इसका उपयोग नहीं करना हो सकता है। और यह तभी संभव होगा जब वे इसके प्रयोग से होने वाले दुष्प्रभावों को समझेंगे और जानेंगे। यह लक्ष्य मुश्किल हो सकता है लेकिन असंभव नहीं, इसे साबित किया है हमारे देश के ही एक राज्य सिक्किम ने। इसने लोगों को पहले जागरूक किया, फिर धीरे-धीरे जब लोगों ने स्वेच्छा से इसका प्रयोग कम कर दिया तो फिर कानून बनाकर इसे प्रतिबंधित किया। इस प्रकार सिक्किम भारत का पहला राज्य बना जिसने “सिंगल यूज प्लास्टिक” पर बैन लगाया।

(लेखिका भारतीय जन संचार संस्थान की छात्रा हैं।)

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