अपने जिन गुणों की वज़ह से महिला लोगों की देखभाल करने में पुरुषों की तुलना में ज्यादा सक्षम होती हैं वही गुण उन्हें बेहतरीन नेता भी बनाता है.जब हम COVID-19 के खिलाफ दुनिया भर के देशों द्वारा किए गए प्रयासों पर नज़र डालते हैं तो हमें पता चलता है कि पुरुष राष्ट्राध्यक्षों की तुलना में महिला राष्ट्राध्यक्ष कोरोना के खिलाफ जंग लड़ने में ज्यादा सफल हो पाई हैं.
ज्यादातर मामलों में महिला राष्ट्राध्यक्ष कोरोना के खिलाफ सबसे पहले और सबसे कारगर उपाय अपनाने में सफल हो पाई.
महिलाएं जानती हैं कि लोगों की देखभाल कैसे की जाए. उन्हें पता होता है लोगों की विशिष्ट जरूरतें. वो अपनी बात लोगों तक पहुंचाने में सफल होती हैं. उन्हें लोगों से संवाद स्थापित करना आता है. महिलाओं की इन योग्यताओं के बारे में पहले से ही हमने बहुत कुछ सुन रखा है. पढ़ रखा है.
जिन गुणों के बारे जिन योग्यताओं के बारे में हमारी ये राय थी कि ये एक घरेलु महिला में होनी चाहिए, वही गुण नेतृत्व की सबसे बड़ी ताकत बनकर सामने आई हैं.
आम तौर पर हमारा ये मानना होता है कि महिलाओं की तुलना में पुरुष ज्यादा मुखर होते हैं. उनमें आत्मविश्वास भी ज्यादा होता है. वो स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने में ज्यादा सक्षम होते हैं. वो मजबूत नेतृत्व दे पाते हैं.
मगर क्या इन सभी योग्यताएं की वज़ह से कोई पुरुष महिलाओं की तुलना में अच्छा नेता बन सकता है? यदि ये सच होता तो फिर क्यों जर्मनी (Germany), न्यूजीलैंड (New Zealand) और ताइवान (Taiwan) ब्रिटेन, अमिका, भारत,, ब्राजील, रूस जैसे देशों की तुलना में कोरोना से लड़ने में ज्यादा सफल हो पाए हैं?
जर्मनी (Germany), न्यूजीलैंड (New Zealand) और ताइवान (Taiwan) का नेतृत्व तो महिलाएं कर रही हैं? जबकि बांकी देशों का नेतृत्व पुरुषों के हाथों में है और वहां कोरोना वायरस के ख़राब हालात हैं.
यदि हम न्यूजीलैंड की जैसिंडा अर्डर्न, ताइवान की साई इंग वेन, सिंट मार्टेन की सिल्वरिया जैकब्स, डेनमार्क की मेटे फ्रेडरिकसेन और जर्मनी की एंजेला मर्केल की बात करें तो इन नेताओं ने अपने अपने देशों को वायरस संक्रमण के इस दौर में सफल नेतृत्व दे पाई हैं. आज ये देश कोरोना से बहुत हद तक सुरक्षित हैं.
कोरोना वायरस (Coronavirus) संक्रमितों और मरने वालों की संख्या के मामले में अमेरिका (US), ब्रिटेन (Britain), ब्राजील (Brazil) और रूस (Russia) की हालत सबसे ज्यादा खराब है. चारों ही देशों के नेता काफी लोकप्रिय और अनुदार (Illiberal Populist) हैं.
अमेरिका (US), ब्रिटेन (Britain), ब्राजील (Brazil) और रूस (Russia) जैसे देशों में कोरोना वायरस के खराब हालात महज संयोग नहीं है. इन देशों के लोकप्रिय मगर अनुदार नेता वैज्ञानिकों की राय को महत्त्व नहीं देते हैं. उनके लिए कॉन्सपिरेसी थ्योरीज ज्यादा महत्वपूर्ण है.
सामाजिक मनोवैज्ञानिक ऐलिस ईगल का मानना है कि महिलाएं उन कार्यों को करने में ज्यादा दिलचस्पी रखती हैं जिन्हें करके उन्हें ये अहसास होता है कि वे “लोगों की मदद कर रही हैं, दुनिया को बेहतर बना रही हैं, मानवता की सेवा कर रही, लोगों की तकलीफें दूर कर रही हैं.
प्रेम, करुणा जैसे सहज मानवीय गुणों वाले नेता कठिन समय में अच्छा नेतृत्व दे पाते हैं. न सिर्फ लोगों का विश्वास जीत पाने में सफल होते हैं, बल्कि लोककल्याणकारी उप्याओं को क्रियान्वयित करने में भी तथाकथित स्ट्रांग लीडर्स की तुलना ज्यादा सफल होते हैं.
दूसरी तरफ लोकप्रिय अनुदार नेता दंभी होते हैं. वो अक्सर ये दावा करते हैं कि उनके पास विशेषज्ञों से ज्यादा कॉमन सेंस है. मगर उनका ये कॉमन सेंस कोविड-19 के मामले में काम नहीं कर पाया. ऐसे पुरुष नेता लोगों से संवाद स्थापित करने का प्रयास भी नहीं करते.
ब्राजील में बोल्सोनारो ने लगातार गलितयाँ की. स्वास्थ्य मंत्री तक को हटाया. यही नहीं, उन्होंने राज्यों पर लोगों के घर में रहने की पाबंदी खत्म करने का लगतार दबाव भी बनाया. वहीं, अमेरिका में ट्रंप विशेषज्ञों के सुझावों को न मानने की जिद पर अभी तक अड़े हुए हैं. उनको लगता है कि वायरस जादू की तरह अचानक खत्म हो जाएगा.
ब्रिटेन में भी हालात बहुत अलग नहीं हैं. ब्रिटेन के पीएम बोरिस जॉनसन की सरकार ने कोरोना वायरस की शुरुआत में लोगों को मिलते-जुलते रहने के लिए प्रोत्साहित किया. उन्होंने हर्ड इम्युनिटी (Herd Immunity) की चर्चा छेड़ दी. रूस में व्लादिमीर पुतिन ने सुरक्षा उपायों को लेकर जल्दबाजी नहीं करने की सलाह दे डाली. उन्होंने फेस मास्क (Face Mask) पहनने और हाथ नहीं मिलाने से इनकार कर दिया