कोरोना ने न्यूयॉर्क के ऊपर लिपटी चमकीली पन्नी को फाड़ दिया है

विनम्रता चतुर्वेदी, मास्टर्स स्टूडेंट, बिजनेस एंड इकनोमिक रिपोर्टिंग, न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी

अमेरिका अगर विशालकाय पेड़ है तो न्यूयॉर्क है उसकी जड़ें और तना– खुराक और मजबूती देने वाला। मैं अभी तक दुनिया के जितने शहरों में रही हूं और घूमी हूँ, उसमें न्यूयॉर्क को सबसे बेहतरीन मानती हूं–क्योंकि यह शहर हर समय जिंदा रहता है। 24 घंटे जगे रहने वाले और खूूब मेहनत करने वाले इस शहर में क्या लोकल ट्रेनें, क्या बसें और क्या लोग– रात को 2 बजे भी ऐसा लगता है कि शाम के 5 बजे हों। कोरोनावायरस ने न्यूयॉर्क की रफ्तार ही नहीं रोकी, उसे मुंह के बल गिरा दिया है। 

6 महीने पहले मैं न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में मास्टर्स की पढ़ाई करने आई थी। घर पर फोन कर कहा था कि यह शहर वाकई ग्लोबल विलेज है, जहां हर देश के हर राज्य के लोग रहते हैं। दुनिया की विविधता को न्यूयॉर्क ने अपने अंदर यूं सहजता से सोखकर रखा है मानो ये बाहरी लोग यही के हों। इसमें कोई शक नहीं कि न्यूयॉर्कर्स क्यों यह कहते हैं कि अगर दुनिया गोल है तो उसका केंद्र बिंदु इसी शहर में है और दुनिया न्यूयॉर्क के किनारे चक्कर लगाती है।

लेकिन जिस न्यूयॉर्क को अब मैं देख रही हूं, इसे तो मैं जानती ही नहीं थी– यह कोई और है। बेधड़क, बेफिक्र, आजाद शहर अब बेहद डरा हुआ है। इतना डरा तो यह 9/11 के हमलों के बाद भी नहीं था। तब गुस्सा था, अब पीड़ा है। दर्द है अपनों के मरने का और कुछ न कर पाने का। मेरे आस-पड़ोस में एंबुलेंस के सायरन का शोर, सारा दिन और सारी रात सुनाई देता है। लेकिन बाहर निकलकर देखने की हिम्मत नहीं होती। 

अपने गुजराती मकान-मालिकों के साथ मैंने बाहर जाकर आटा, दाल-चावल और फ्रोज़न सब्जियां घर में भर लिया था। हमें घर से निकले अब एक महीने से ऊपर हो चुका है। उनकी सरकारी नौकरी है और मैं स्टूडेंट हूं, और शायद हम सबसे ज्यादा सुरक्षित हैं।

मेरा सिलेक्शन एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थान में समर इंटर्नशिप के लिए हुआ, जो अब कोरनावायरस के चलते कैंसल हो चुका है। लेकिन मेरी यह समस्या बहुत छोटी है। मुझे चिंता हैे उस अफ्रीकी बैंड की जो ब्रॉडवे की सड़कों पर गिटार और ड्रम बजाता है। वह बांग्लादेशी जो न्यूयॉर्क यूूनिवर्सिटी के बाहर फूड ट्रक लगाकर ”एक डॉलर में पिज्जा स्लाइस और एक डॉलर की कॉफी” को ‘बेस्ट इन टाउन’ कहकर बेचता है। वह हिस्पैनिक औरत जो अपने स्कूल से लौटकर आए बेटे के साथ देर रात तक टाइम्स स्क्वॉयर पर खड़े होकर हाथ की लकीरें पढ़कर भविष्य बताती है। कोरोनावायरस ने न्यूयॉर्क की ऊपर लिपटी चमकीली पन्नी को फाड़कर अमीरी-गरीबी की खाई को खोलकर रख दिया है।

कोरोनावायरस का डर जो जनवरी से शुरू हुआ, उस पर अमेरिकी सरकार की बेपरवाही और रुखेपन ने लोगों को गुस्सा से ज्यादा दर्द पहुंचाया है। जिस महामारी की तैयारी अलग से की जानी चाहिए थी, उस पर सरकार का यह कहना कि क्या बंद करें और कब तक, अपरिपक्वता की पराकाष्ठा है। वरना क्यों नर्सों को डस्टबिन की पन्नी लपेटकर इलाज करना पड़ता? क्यों डॉक्टरों को यह कठिन फैसला लेना पड़ता कि वेंटिलेटर पर जवान को रखें या बुजुर्ग को? क्यों शवों को रखने के लिए ताबूत कम पड़ जाते?  

अंग्रेजी के कवि पी.बी. शेली की कविता का एक अंश है– if winter comes, can spring be far behind. यानि, अगर कष्टकारी सर्दी आती है तो वसंत भी दूर नहीं रहता। यह निराशा पर आशा की जीत का प्रतीक है। न्यूयॉर्क में अप्रैल तो आ गया है, वसंत का मौसम नहीं आया। अब यह तभी आएगा, जब कोरोनावायरस की चादर हटेगी । धूप लेने लोग घरों से निकल पाएंगे और फिर शुरू होगा वही न्यूयॉर्क की सड़कों पर नाचने-गाने, खाने, खूब काम करने और प्यार करने का सिलसिला। इंतजार है। 

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