क्यों धर्म बीमारी के उन्मूलन में बाधक बनती है?

दिल्ली के निज़ामुद्दीन (वेस्ट) में तबलीग़ी जमात के धार्मिक जुटान के बाद जब वहां से सैकड़ों कोरोना के मरीज निकले और उसके बाद जिस तरह कुछ धार्मिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ा उसके बाद फिर सालों पुराना सवाज सामने आ गया है कि क्या धर्म किसी महामारी या बीमारी से वक्त रहते निबटने में बाधक बनता है? 
लेकिन बात भारत भर की नहीं है। अमेरिका से लेकर ईटली तक ऐसे कई मिसाल मिले जब कोरोना से निबटने में अंधविश्वास सामने आयी है। मलेशिया से पाकिस्तान तक ऐसी बातें सामने आई।  सोशल मीडिया पर हर धर्म से जुड़ी ऐसी वीडियो सामने आयी जिसमें कहा गया कि धर्म के माध्यम से उसका इलाज किया जाता है। उत्तर बिहार में तो एक बाल से इसका इलाज करने का दावा किया जाने लगा है। जानकारों के अनुसार इन सब बातों से न सिर्फ बीमारी के और पसरने का डर बढ़ता है बल्कि लोग इलाज करवाने से घबराते हैं। उसकी परिणिति डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मियों पर हमले होने जैसे घटना के रूप में हो जाती है। देश के कई गांवों से आ रही मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कहीं लोग बीमारी से बचाव के लिए मेंहदी लगा रहे हैं तो कहीं घर के आगे चूना का निशान लगा रहे हैं। कहीं हरी चूड़ी पहन रहे  हैं तो कहीं घर के आगे दिया जलाया जा रहा है। जानकारों के अनुसार जहां अंध विश्वास गहरा होगा वहां वैज्ञानिक प्रक्रिया के प्रति प्रतिरोध और बढ़ेगा।
इसलिए पीएम ने की अपील
यही कारण है कि दो दिन पहले जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के सारे सीएम के साथ वीडियो कांफ्रेसिंग की मदद से मीटिंग की तो उसमें इस बात पर सबसे अधिक फोकस रहा कि किस तरह धार्मिक स्तर पर जागरूकता फैलायी जाय। तय हुआ कि हर जिले स्तर पर अधिकारी धार्मिक गुरुओं से बात करेंगे। पीएम ने मीटिंग में कहा-पीएम ने कहा कि कोरोनावायरस ने हमारी आस्था, विश्वास, विचारधारा पर भी हमला बोला है इसलिए हमें अपनी आस्था, पंथ, विचारधारा को बचाने के लिए कोरोनावायरस को परास्त करना पड़ेगा।  उन्हें इस दिशा में बताएंगे कि किस तरह उनक सहयोग जरूरी है। खुद पीएम ने अलगटलग संप्रदाय के प्रतिनिधियों से भी बात की।

पोलियो उन्मूलन में ऐसा ही हुआ

बीस साल साल पोलिया उन्मूलन में भी धार्मिक कट्टरता और इनके प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। ऐसा अंधविश्वास सामने आया कि दवा का नकारात्मक प्रभाव होता है। इसक बाद दो बूंद दवाई की नहीं लेने की आवाज कई जगहों से उठी। इसेस निबटने के लिए यूनिसेफ ने कई धार्मिक गुरुओं की मदद ली। उनसे आग्रह किया कि वे इसके लिए लोगों को जागरुक करें। तब जाकर इसमें कही कामयाबी मिलती है।  

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