कोविड-19 रोगियों के शरीर,डॉक्टरों के लिए एक आश्चर्य प्रस्तुत कर रहे हैं

 

डॉक्टर स्कंद शुक्ला

वह डॉक्टर के सामने बैठा हुआ बात कर रहा था। एकदम सामान्य। बीच-बीच में फ़ोन को खँगालता। लग ही न रहा था कि उसके शरीर में कोई असामान्य घटना चल रही हो। बस उँगली में लगा पल्स-ऑक्सीमीटर जो ख़ून में मौजूद ऑक्सीजन का आंशिक दबाव नापता है उसकी रीडिंग सामान्य से कम आ रही थी। 80 % मात्र।

वह कोविड-19-संक्रमित था और उसके फेफड़े प्रभावित थे,पर देखने से स्थिति उतनी    गम्भीर नहीं लगती थी।

ख़ून में दो गैसों की मौजूदगी से ढेरों लोग परिचित हैं : ऑक्सीजन व कार्बनडायऑक्साइड। ऑक्सीजन फेफड़ों से शरीर-भर में पहुँचायी जाती है , कार्बनडायऑक्साइड शरीर-भर से फेफड़ों में लौटती है। इन दोनों गैसों की मात्रा आमतौर पर ख़ून में नहीं नापी जाती , इन्हें आंशिक दबाव यानी पार्शियल प्रेशर में व्यक्त किया जाता है। साथ ही ऑक्सीजन की सन्तृप्ति यानी सैचुरेशन को एक और ढंग से व्यक्त करते हैं : प्रतिशत में। स्वस्थ्य व्यक्ति का ऑक्सीजन-सैचुरेशन 98-99 % हुआ करता है। इस प्रतिशत का 90 के नीचे जाने का अर्थ ख़ून में ऑक्सीजन की कमी। इस कमी को मेडिकल भाषा में हायपॉक्सिया नाम दिया गया है।

कोविड-19 रोगियों के शरीर डॉक्टरों के लिए एक आश्चर्य प्रस्तुत कर रहे हैं। वे रोगी नहीं , जो गम्भीर रूप से बीमार हैं। उनके ख़ून में तो ऑक्सीजन-सैचुरेशन और पार्शियल प्रेशर कम हैं ही , उन्हें तो हायपॉक्सिया है ही। लेकिन जिनमें मामूली लक्षण हैं और जो शक़्ल से मामूली रूप से बीमार लग रहे हैं , उनका भी ऑक्सीजन-सैचुरेशन सामान्य नहीं आ रहा बल्कि वह कम है। यानी रोगी के चेहरे को देख कर धोखा हो रहा है और ख़ून में गिर रहे ऑक्सीजन-स्तर का पता ही नहीं चल रहा , जब तक पल्स-ऑक्सीमीटर मशीन की तरफ़ डॉक्टर न देखे ! डॉक्टरों ने इसे ‘हैपी हायपॉक्सिया’ नाम दिया है : प्रसन्न ( यानी सामान्य ) चेहरे के साथ ख़ून में ऑक्सीजन-स्तर का गिरते जाना।

दुनिया-भर के अनेक डॉक्टरों ने इस फाइंडिंग की पुष्टि की है। फेफड़ों की तमाम बीमारियों में हायपॉक्सिया होता है , यानी रक्त में ऑक्सीजन-स्तर गिरता है। किन्तु कोविड-19 के ढेरों रोगियों में ऐसे रोगी लक्षणहीन या मामूली लक्षणों से युक्त रहा करते हैं। श्वसन सामान्य है , चेहरे पर कोई तनाव नहीं किन्तु पल्स-ऑक्सीमीटर में ऑक्सीजन-सैचुरेशन गिर रहा है। 70 % – 60 % – 50 % … धीरे-धीरे-धीरे।

पर ऐसा क्यों है , इस पर अनेक डॉक्टर अपने मत रख रहे हैं। एक महत्त्वपूर्ण मत यह है कि इन रोगियों के फेफड़ों की नन्ही रक्तवाहिनियों में ख़ून जम रहा है। ये नन्ही ख़ून की नलियाँ ब्लॉक हो रही हैं। इन्फ्लेमेशन के कारण यह रक्त का जमाव आरम्भ हुआ है : केवल फेफड़ों में ही नहीं, पैरों की उँगलियों में भी अनेक डॉक्टरों ने ऐसे ख़ून-जमाव की पुष्टि की है। कई डॉक्टर ऐसी प्रतिकूल परिस्थिति में ख़ून पतला करने वाली दवाएँ जैसे हिपैरिन देते हैं , जिससे न केवल फेफड़ों की स्थिति सुधर रही है बल्कि पैरों की उँगलियाँ भी सामान्य हो गयी हैं। ऐसे में कोविड-19 रोगियों के फेफड़ों की नन्ही रक्तवाहिनियों को थक्कों से पाट देने वाली यह प्रक्रिया शोध का विषय बन गयी है।

क्या डॉक्टर सामान्य चेहरे वाले इन रोगियों में हिपैरिन जैसी ख़ून पतला करने वाली दवाएँ दें ? या अभी और शोध के नतीजों का इंतज़ार करें ? इस परिस्थिति में रोगियों को ऑक्सीजन का श्वसन-सपोर्ट देते हुए वे उन्हें पेट के बल लेटने को कहें ताकि फेफड़ों के निचले हिस्सों में हवा जाने लगे ? और क्या वे एहतियातन वेंटिलेटर का इस्तेमाल करके लक्षणों को विकसित होने से पहले ही रोक लें ? क्या घरों में पल्स-ऑक्सीमीटर रखकर लक्षणहीन अथवा मामूली लक्षणों वाले कोविड-19 रोगी अपना ऑक्सीजन-सैचुरेशन जाँचते रहें ? किसी मशीन से जाँचने पर कम आया ऑक्सीजन-स्तर क्या हमेशा फेफड़ों के सम्बन्ध में आगामी बुरी स्थिति का ही द्योतक माना जाना चाहिए ?

इन-सब प्रश्नों के उत्तरों को लेकर संसार-भर के डॉक्टर एक-मत नहीं हैं। यह बीमारी नयी है , उसके शारीरिक बदलाव भी। इसलिए ये सभी प्रश्न शोध के लिए खुले हैं और इन पर काम लगातार जारी है

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